जयपुर, 23 अप्रेल। किसानों को उच्च गुणवत्ता युक्त बीज, उर्वरक एवं कीटनाशक रसायन उपलब्ध कराने और कृषि आदानों यथा उर्वरक, बीज एवं कीटनाशी रसायनों की गुणवत्ता सुनिश्चित करने हेतु राज्य कृषि प्रबंध संस्थान, दुर्गापुरा जयपुर में गुण नियंत्रण निरीक्षकों की कार्य क्षमता में वृद्धि के लिए तीन दिवसीय ओरियंटेशन ट्रेनिंग कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यशाला में पूरे प्रदेश से 65 गुण नियंत्रण निरीक्षकों द्वारा भाग लिया गया।
कार्यशाला में निरीक्षकों को यूरिया डायवर्जन पर नियंत्रण, कृषि आदानों की गुणवत्ता नियंत्रण, उर्वरक नियंत्रण आदेश 1985 और आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 की जानकारी दी गई।

उर्वरक नियंत्रण आदेश 1985 –
भारत में उर्वरकों के उत्पादन और बिक्री को विनियमित करने के लिए यह एक महत्वपूर्ण कानून है जो आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 के तहत जारी किया गया है। इसका उद्देश्य सभी किसानों को उचित मूल्य पर गुणवत्ता युक्त उर्वरक उपलब्ध कराना तथा समान वितरण सुनिश्चित करना है।
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ओरियंटेशन कार्यशाला में नैनो यूरिया और नैनो डीएपी के सेम्पलिंग लेने की जानकारी दी गई। जैविक खेती में गुणवत्ता नियंत्रण, प्राकृतिक खेती, मृदा स्वास्थ्य और मानव स्वास्थ्य पर भी जोर दिया गया। जैविक खेती में गुणवत्ता नियंत्रण जैविक मानकों के अनुरूप उत्पादों का उत्पादन सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण है। कीटनाशक अधिनियिम 1968 की भी जानकारी दी गई।
कीटनाशक अधिनियम 1968 –
इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य मनुष्य व जानवरों के लिए जोखिम को कम करते हुए कीटनाशकों के आयात, निर्माण, बिक्री, परिवहन, वितरण और उपयोग को नियंत्रित करना है। इस अधिनियम के अनुसार किसी भी कीटनाशक को बाजार में बेचने से पहले उसका पंजीकरण करवाना अनिवार्य है। कीटनाशकों के निर्माण एवं बिक्री के लिए लाईसेन्स लेना होगा। अधिनियम नकली व निम्न गुणवत्ता वाले कीटनाशकों को बाजार में बिक्री करने से रोकता है।
कार्यशाला में निरीक्षकों को कीटनाशी प्रशिक्षण प्रयोगशाला का भ्रमण करवाकर कीटनाशी नमूनों के विश्लेषण की जानकारी दी गई। बीज परीक्षण प्रयोगशाला में बीज के नमूनों के विश्लेषण की और उर्वरक परीक्षण प्रयोगशाला में उर्वरकों नमूनों के विश्लेषण की जानकारी दी गई।
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नेमीचंद/आकाश